अशासकीय सहायता प्राप्त इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों के हाथ रंगे हुए हैं एम डी एम के गोलमाल में


दिनेश प्रसाद मिश्रा 
शाहाबाद(हरदोई)जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, खण्ड शिक्षा अधिकारियों ,उपजिलाधिकारी,जिला विद्यालय निरीक्षक एवं मिड डे मील कोऑर्डिनेटर्स की उदासीनता के कारण मध्यान्ह भोजन योजना, अशासकीय सहायता प्राप्त इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों की अवैध कमाई का जरिया बन गई है।मध्यान्ह भोजन योजना का कुछ ऐसा हाल, बच्चे बेहाल और बिचौलिए मालामाल हो गए हैं।
सरकार बच्चों को दोपहर का भोजन मुहैया करा रही है। परंतु असलियत तो यह है कि अन्य सरकारी योजनाओं की तरह मिड डे मील (एमडीएम) योजना भी भ्रष्टाचार की शिकार है।
प्रधानाचार्यों के भ्रष्टाचार के बाद बच्चों को कैसा भोजन मिलता होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है।
 मिड डे मील योजना से बच्चों की जगह बिचौलिए हृष्ट पुष्ट हो रहे हैं।
पूरी की पूरी योजना एक बड़े गोलमाल की भेंट चढ़ गई है। हद तो यह है कि इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों  के हाथ भी एमडीएम के गोलमाल में रंगे हुए हैं।
विगत वर्षों में मध्यान्ह भोजन योजना के अंतर्गत खाना खाने से बीमार होने के दर्जनों मामले सामने आए और इनमें से अधिकांश मामले इण्टर कालेजों के कक्षा 06 से कक्षा 08 के बच्चों से जुड़े थे।
लेकिन बेसिक शिक्षा अधिकारी इन एडेड इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों पर इस हद तक मेहरबान रहे हैं कि अशासकीय सहायता प्राप्त इण्टर कालेजों में कोई बेसिक शिक्षा अधिकारी/ खंड शिक्षा अधिकारी जांच करना भी जरूरी नहीं समझता।
जिसके कारण इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों ने फल एवं दूध का वितरण किए बिना ही एम डी एम की धनराशि का गबन कर रहे हैं।
इसके अलावा जिम्मेदार पर्याप्त धनराशि मिलने के बाद भी भ्रष्टाचार करने से नहीं चूक रहे हैं। इस कारण बच्चे घटिया खाना खाने से बीमार पड़ रहे हैं।
एम डी एम में भ्रष्टाचार के कारण आईवीआरएस सिस्टम के भी फूल रहे हाथ पांव।
एमडीएम के आंकड़ों की बाजीगरी को रोकने के लिए जून 2010 में आईवीआरएस (इंटरेक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्टम) की शुरुआत की गई ।
इस दैनिक अनुश्रवण प्रणाली का मकसद प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों एवं राजकीय तथा एडेड इण्टर कालेजों में प्रतिदिन एमडीएम ग्रहण करने वाले बच्चों की संख्या की सही जानकारी हासिल करना था।टेक्नॉलॉजी के आधार पर कंप्यूटर और मोबाइल फोन के इंटरफेस के आधार पर इस प्रणाली से हर कार्य दिवस पर स्कूल के प्रधानाध्यापक, अध्यापक और शिक्षामित्र का मोबाइल नंबर जुड़ा रहता है, जिससे ऑटोमेटिक कॉल इनके नंबर जाती है और एमडीएम ग्रहण करने वाले बच्चों की संख्या पूछी जाती है।
इसके उत्तर में मोबाइल से अंक टाइप करके उत्तर देना होता है। खाना न बनने की स्थिति में शून्य दबाकर उत्तर देना होता है।
इस सिस्टम से जनपदवार एक रियल टाइम रिपोर्ट बनाई जाती है।
लेकिन अब भ्रष्टाचार के चलते इस व्यवस्था के भी हाथ पांव फूलने लगे हैं। इसके चलते अब बेसिक शिक्षा विभाग पंजीकृत स्टूडेंट्स का आधार नंबर दर्ज करने की व्यवस्था कर रहा है।
मध्यान्ह भोजन में आईवीआरएस सिस्टम को बैकअप देने के उद्देश्य से बेसिक एवं माध्यमिक स्कूलों के बच्चों को आधार के जरिए जोडऩे का जिम्मा यूपी डेस्को को दिया गया।
लेकिन सॉफ्टवेयर की तकनीकी दिक्कतों के कारण अभी इस योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है।
सरकार की ओर से सरकारी स्कूल में सभी बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया जाता है, ताकि स्कूल में बच्चे रोजाना आयें और उन्हें पर्याप्त पोषण मिलता रहे. इसकी के लिए सरकार ने मिड डे मील योजना की शुरुआत की है. इस योजना के तहत सरकार बच्चों को शिक्षा के साथ ही स्वास्थ और पोषित बनाना चाहती है,परंतु भ्रष्ट राजकीय एवं एडेड माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने एम डी एम को अपनी अवैध कमाई का जरिया बना लिया है।
फलस्वरूप अभिभावकों और छात्रों में इण्टर कालेजों के प्रधानाचार्यों के प्रति घोर असंतोष व्याप्त हो गया।

0/Post a Comment/Comments

Stay Conneted

Stay Here