प्रभुश्रीराम के वनगमन करते ही अयोध्या की खुशियों को लगा ग्रहण

 मिर्जापुर से गौतम शर्मा की खास रिपोर्ट


त्रिमुहानी रामलीला मैदान पर चल रहे रामलीला में श्री ब्रह्म अवध आदर्श रामलीला मंडल अयोध्या की टीम ने वनगमन की लीला प्रस्तुत की। प्रभु श्री राम, माता जानकी, भ्राता लक्ष्मण अयोध्या की तरफ रवाना होते हैं, उधर महराज दशरथ ने राम को अयोध्या की राजगद्दी सौंपने की डुगडुगी पिटवाते हैं।

अयोध्या दुल्हन की तरह सजाया गया है, चहुंओर राजाराम चंद्र की जय का जयकारा हो रहा है,लेकिन यह सब कुछ कूबड़ी मंथरा को खटक रहा था। मंथरा ने महारानी कैकेई से राम की जगह भरत को राजगद्दी व राम को 14 वर्ष का वनवास मांगने की शिक्षा दी। कैकेई को देती है कैकई मंथरा की बातों में आकर कोप भवन जा बैठीं। महाराज दशरथ को अपने दिए हुए दो वरदान मांगने का समय बताते हुए राम की सौगंध दे, वरदान मांगती है, एक राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरा भरत को राजा बनाने का वचन महारानी कैकेई को महराज देते हैं। इसके बाद तो अयोध्या की खुशियों को ग्रहण लग गया। सूर्यवंशी राम पिता की आज्ञा से माता सीता, भ्राता लक्ष्मण वनवास को निकल पड़े। केवट राज निषाद प्रभु श्री राम का पैर पखारकर अपनी नाव पर बैठा कर प्रभु को नदी पार कराते हैं।



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